सरकारी कर्मचारियों के लिए खुशखबरी, डीए में 4% की बढ़ोतरी, 10 लाख कर्मचारियों को फायदा

पश्चिम बंगाल के सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए बड़ी खुशखबरी आई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने राज्य कर्मचारियों को आर्थिक राहत देते हुए महंगाई भत्ते (डीए) में 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने का आदेश जारी कर दिया है। नई दरें 1 अप्रैल 2025 से लागू होंगी, जिससे सरकारी कर्मचारियों, पेंशनर्स और शिक्षकों सहित लाखों लोगों को सीधा लाभ मिलेगा।

महंगाई भत्ता बढ़कर 18% हुआ, 10 लाख से ज्यादा लोगों को फायदा

वित्त विभाग द्वारा जारी आदेश के अनुसार, महंगाई भत्ते में 4% की वृद्धि के बाद राज्य कर्मचारियों और पेंशनर्स का डीए अब 14% से बढ़कर 18% हो गया है। इस फैसले से राज्य सरकार के 10 लाख से अधिक कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को आर्थिक लाभ पहुंचेगा। बढ़े हुए डीए का लाभ न सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को मिलेगा, बल्कि सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों, गैर-शिक्षण कर्मचारियों, पंचायत कर्मियों, नगर निगम कर्मचारियों और अन्य सरकारी उपक्रमों में कार्यरत लोगों को भी इसका फायदा होगा।

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केंद्र और राज्य के कर्मचारियों के डीए में अब भी 35% का अंतर

हालांकि इस बढ़ोतरी के बावजूद केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार के कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में अब भी 35% का अंतर बना हुआ है। लंबे समय से राज्य के कर्मचारी डीए को लेकर केंद्र के समान दरों की मांग कर रहे हैं। कई बार इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं, लेकिन फिलहाल राज्य सरकार ने अपने स्तर पर 4% की वृद्धि करके कर्मचारियों को राहत देने की कोशिश की है।

बजट में किया गया था डीए बढ़ाने का ऐलान

वित्त मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 3.89 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया था, जिसमें राज्य कर्मचारियों और पेंशनर्स के डीए में बढ़ोतरी की घोषणा की गई थी। इस घोषणा को अब आधिकारिक रूप से लागू कर दिया गया है। ममता सरकार के इस फैसले को आगामी विधानसभा चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है, क्योंकि 2026 में पश्चिम बंगाल में चुनाव होने वाले हैं।

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चुनाव से पहले कर्मचारियों को खुश करने की रणनीति?

राज्य सरकार का यह फैसला चुनावी रणनीति का भी हिस्सा माना जा रहा है। 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ममता सरकार ने कर्मचारियों और पेंशनर्स को आर्थिक राहत देकर उन्हें अपने पक्ष में साधने की कोशिश की है। विपक्षी दलों का कहना है कि यह फैसला चुनावी फायदे को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, लेकिन सरकार का कहना है कि वह हमेशा से कर्मचारियों के हित में फैसले लेती रही है।