हिदी सिनेमाजगत में बहुत कम फिल्मकार ऐसे रहे हैं जिन्होंने अनुशासित तरीके से फिल्में बनाई और अपने उसूलों को कभी नहीं तोड़ा। शांताराम राजाराम वणकुद्रे यानी वी शांताराम ऐसे ही फिल्मकार थे। शांताराम ने सामाजिक समस्याओं को सिनेमा के माध्यम से परदे पर उतारा और अपनी फिल्मों को हिंदी और मराठी दो भाषाओं में बनाने की शुरुआत की। ‘आदमी’, ‘पड़ोसी’, ‘नवंरग’, ‘डॉ कोटनीस की अमर कहानी’, ‘दो आंखें बारह हाथ’ जैसी उद्देश्यप्रधान फिल्में बनाने वाले वी शांताराम की 18 नवंबर को 119वीं जयंती थी।
वाकया 1959 का है। फिल्मों की शूटिंग के लिए निर्माताओं को नकली आभूषणों की आपूर्ति करने वाले अमरनाथ कपूर वी शांताराम की फिल्म ‘नवरंग’ के लिए आभूषण मुहैया करवा रहे थे। एक दिन अमरनाथ ने वी शांताराम से निवेदन किया कि उनका बेटा फिल्म की शूटिंग देखना चाहता है। अगर उनकी अनुमति मिल जाए, तो बेटे की इच्छा पूरी हो सकती है। शांताराम यह सुनकर पसोपेश में पड़ गए। हालांकि अमरनाथ का निवेदन ऐसा नहीं था, जिसे पूरा करने में वी शांताराम को किसी तरह की मुश्किल थी। मगर समस्या थी शांताराम के उसूल।
1921 से फिल्मों में काम कर रहे शांताराम ने अपने उसूलों के चलते 1929 में महाराष्ट्र फिल्म कंपनी छोड़ी और साझेदारी में प्रभात फिल्म कंपनी बनाई। फिर अपने उसूलों के साथ कोई समझौता न करते हुए प्रभात छोड़ी और खुद का स्टूडियो राजकमल कलामंदिर बनाया। 1943 में मुंबई के परेल इलाके में उन्होंने राजकमल स्टूडियो की स्थापना की थी।
राजकमल के कर्मचारी मासिक तनख्वाह पर काम करते थे। आउटडोर शूटिंग में शांताराम स्पॉट बॉय से लेकर स्टारों तक को शाम का खाना अपने हाथ से परोस थे। एक उसूल यह भी था कि शूटिंग के दौरान बाहर का कोई भी व्यक्ति, या अतिथि सेट पर नहीं होगा। राजकमल में इस नियम का कट्टरता से पालन किया जाता था। अमरनाथ की फरमाइश से राजकमल के नियम टूट रहे थे।
अमरनाथ से संबंधों को देखते हुए वी शांताराम ने एक उपाय निकाला। उन्होंने अमरनाथ से कहा कि वह उनके बेटे को जूनियर आर्टिस्ट के रूप में स्टूडियो के सेट पर उपस्थित होने की अनुमति दे सकते हैं। इससे लड़का शूटिंग भी देख लेगा और राजकमल स्टूडियो के उसूल और अनुशासन भी बरकरार रहेंगे। इस तरह अमरनाथ का बेटा रवि कपूर ‘नवरंग’ में बन गया जूनियर आर्टिस्ट। बाद में वी शांताराम ने उसे अपनी बेटी राजश्री का हीरो बनाकर ‘गीत गाया पत्थरों’ फिल्म शुरू कर दी। बाकायदा अनुबंध साइन करवाया कि बाहर की फिल्मों में काम नहीं कर सकते।
यह फिल्म हिट हुई और इसी के साथ रवि कपूर स्टार बन गए। जीतेंद्र को बाद में शांताराम ने अपनी बेटी राजश्री के साथ बूंद जो बन गई मोती का हीरो बनाया। मगर राजश्री पहले ही दिन सेट पर लेट पहुंची। गुस्से में वी शांताराम ने राजश्री को फिल्म से बाहर कर दिया और उनकी फिल्म ‘स्त्री’ और ‘सेहरा’ में छोटी-छोटी भूमिकाएं करने वाली बी ग्रे फिल्मों की हीरोइन मुमताज को जीतेंद्र की हीरोइन बना दिया।
जीतेंद्र ने मुमताज के साथ काम करने से इनकार कर दिया था क्योंकि उन्हें डर था कि सफलता के बाद उनकी जो इमेज बनी है, वह बी ग्रेड फिल्मों की हीरोइन मुमताज के हीरो बनने से प्रभावित होगी। उसूलों के पक्के वी शांताराम जब अपने बेटी को हटा सकते थे तो जीतेंद्र की क्या बिसात थी। उन्होंने हीरोइन बदलने से साफ इनकार कर दिया और जीतेंद्र को मुमताज का हीरो बनना पड़ा। बाद में यही मुमताज हिंदी सिनेमा की सफल हीरोइन बनी और जीतेंद्र के साथ पढ़ने वाले राजेश खन्ना के साथ उनकी जोड़ी लोकप्रिय हुईं.
मुझे इसलिए रिप्लेस किया गया क्योंकि हीरो की पत्नी …इंडस्ट्री में रिजेक्शन पर बोल पड़ीं Taapsee