
मुंबई
एक्ट्रेस ऋचा चड्ढ़ा बॉलीवुड में अपने बेबाकी भरे अंदाज के लिए जानी जाती हैं। एक्ट्रेस किसी भी मुद्दे पर लोगों की प्रवाह किए बिना अपनी बात सबके सामने रखती है। सुशांत सिंह राजपूत के बाद बॉलीवुड में नेपोटिज्म का मुद्दा काफी गर्माया हुआ है। अब इस मामले पर का रिएक्शन सामने आया है। उन्होंने ट्विटर पर एक लंबा-चौड़ा ब्लॉग शेयर करते हुए बेबाकी से अपनी बातें लोगों को स्पष्ट की हैं।
ऋचा ने ट्विटर पर एक ब्लॉग शेयर किया है और साथ ही इसके कैप्शन में लिखा, अलविदा दोस्त… कृपया इसे तभी पढ़ना, जब आप बदलाव को लेकर गंभीर हों…किसी के लिए द्वेष के साथ नहीं और सबके लिए प्यार के साथ। ऋचा ने ब्लॉग में लिखा..यहां इक खिलौना है। इस कविता के अंत में एक्ट्रेस ने लिखा- साहिर लुधियानवी के ये शब्द फातिहे की तरह बीते महीने से मेरे कानों में गूंज रहे हैं।
एक्ट्रेस ने आगे लिखा, यह कहा जा रहा है कि इंडस्ट्री ‘इनसाइडर्स’ और ‘आउटसाइडर्स’ में बंटी है? मेरी राय में हिंदी फिल्म उद्योग और पूरा ईको-सिस्टम केवल दयालु और निर्दयी लोगों के बीच बंटा हुआ है। कई डायरेक्टर्स को मैने एक महीने पहले दुखद मेसेज शेयर करते देखा। इनमें से कई ने अपने साथ के लोगों की फिल्में रिलीज से पहले बर्बाद कीं, आखिर वक्त पर उन ऐक्ट्रेसस को रिप्लेस कर दिया। जिन्होंने उनके साथ सोने से मना कर दिया और कईयों ने बार-बार भविष्यवाणी की ‘इसका कुछ नहीं होगा’।
ऐसे ही दूसरों का भविष्य देखने वाले आखिर में अपने चेहरे पर अंडे से भुर्जी बनाकर बैठते हैं। आप ईश्वर नहीं हैं। दुनिया को थकेपन और मानवद्वेष फैलाने वाली बातों से संक्रमित करना बंद कीजिए।
मेरे करियर के शुरुआती दौर में आउटसाइडर्स की वजह से मेरा रोल काट दिया गया था। इन सबसे उबरने में मुझे अपनी पूरी ताकत लगानी पड़ी, लेकिन यह मेरे बारे में नहीं है।
दुखद बात यह है कि यहां हर किसी के अनुभव का अपना संस्करण है।’एक्ट्रेस ने कहा भाई-भतीजावाद मुझे वास्तवि हंसने में मजबूर करता है। मुझे स्टार किड्स से नफरत नहीं है। हमसे उम्मीद क्यों की जाती है? अगर किसी के पिता एक स्टार हैं, तो वे उस घर में पैदा होते हैं, जैसे हम अपने लोगों के लिए हैं।
क्या आपको अपने माता-पिता पर शर्म आती है? क्या किसी और से अपने माता-पिता, परिवारों, विरासत के लिए शर्मिंदा होने की उम्मीद करना सही है? यह घटिया और बकवास तर्क है। क्या आप मेरे बच्चों को मेरे संघर्ष के लिए शर्मिंदा होने के लिए कहेंगे। स्टार-किड्स को अपने कुलों के भीतर प्रतिद्वंद्विता से निपटना होगा। अक्सर यह एक इंटर-जेनेरेशन, अनफॉरगिविंग प्रतियोगिता है।
यह जानते हुए भी कि हमारे देश में जाति कितनी गहरी है, क्यों यह अस्थिर रैंकिंग प्रणाली किसी को आश्चर्यचकित करती है? हम कभी नहीं जान सकते हैं कि कोई और व्यक्ति यहां क्या कर सकता है। मैं सिर्फ हमदर्दी रख सकती हूं, लेकिन मुझे उस दर्द का पता नहीं चल सकता, जब तक कि मैं उनके जूते में खड़ी नहीं हो जाती।