शनिश्चरी अमावस्या में शनि मंदिर में छोड़ते हैं जूते-चप्पल, जानें क्या है ये आस्था और परंपरा

शनिश्चरी अमावस्या का पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। विशेष रूप से मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित त्रिवेणी घाट और नवग्रह शनि मंदिर में इस दिन विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। इस पावन अवसर पर हजारों श्रद्धालु शिप्रा नदी में स्नान कर शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। इस दौरान श्रद्धालु अपने पुराने जूते-चप्पल और वस्त्र त्यागते हैं, जिसे परंपरागत रूप से पनौती से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।

त्रिवेणी घाट पर उमड़ी भक्तों की भीड़

चैत्र मास की शनिश्चरी अमावस्या और नवरात्रि के शुभारंभ के कारण श्रद्धालुओं का सैलाब त्रिवेणी घाट और अन्य पवित्र स्थलों पर उमड़ पड़ा। शुक्रवार रात से ही भक्त स्नान के लिए घाटों पर एकत्रित होने लगे थे। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस पावन अवसर पर करीब तीन लाख श्रद्धालु श्री शनि नवग्रह मंदिर में दर्शन करेंगे। उज्जैन के अलावा, नर्मदापुरम और अन्य धार्मिक स्थलों पर भी भक्तों की भारी भीड़ देखी जा रही है।

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सुरक्षा और प्रशासनिक तैयारियां

श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन द्वारा त्रिवेणी घाट, शनि मंदिर और शिप्रा तट पर विशेष सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं। सुबह 5 बजे से ही स्नान का क्रम शुरू हो गया था, जो दोपहर तक जारी रहने की संभावना है। नर्मदापुरम के सेठानी घाट, विवेकानंद घाट, गोंदरी घाट, पर्यटन घाट और बांद्राभान घाट पर भी स्नान और पूजन के लिए हजारों श्रद्धालु पहुंचे। प्रशासन ने घाटों पर पुलिस बल की तैनाती, सीसीटीवी कैमरों की निगरानी और अन्य सुविधाओं का विशेष प्रबंध किया है।

क्यों छोड़े जाते हैं जूते-चप्पल और वस्त्र?

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, शनिश्चरी अमावस्या पर शिप्रा नदी में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से इस दिन पुराने जूते-चप्पल और कपड़े त्यागने की परंपरा प्रचलित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से शनि की साढ़े साती और ढैय्या का प्रभाव कम होता है। यह प्रक्रिया जीवन में सुख-समृद्धि और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती है। शनि देव के भक्त स्नान करने के बाद मंदिर में पूजा-अर्चना कर नवग्रहों की कृपा प्राप्त करने की कामना करते हैं।

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शनिश्चरी अमावस्या पर दान का महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनिश्चरी अमावस्या के दिन कुछ विशेष वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है। इन वस्तुओं में काला कपड़ा, लोहा, तिल, तेल और नमक प्रमुख हैं। यह सभी वस्तुएं शनि देव से जुड़ी होती हैं और इनके दान से जीवन में शनि दोष कम होने की मान्यता है। इसके अलावा इस दिन गण गौरी पूजा का विशेष महत्व बताया गया है, जिसे 1 अप्रैल 2025 को सुबह 9:28 बजे के बाद किया जाना शुभ रहेगा।

भजन-कीर्तन और आध्यात्मिक माहौल

शनिश्चरी अमावस्या पर श्रद्धालु भजन-कीर्तन और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेकर इस शुभ दिन को और भी पावन बनाते हैं। शिप्रा नदी के किनारे और शनि मंदिर में संध्याकालीन आरती के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। इस दिन को लेकर श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह और श्रद्धा देखी जाती है।