राजा श्रीराम की अद्भुत गाथा बताएगी रामराजा किताब, रामनवमी पर देख पाएंगे

भारतीय संस्कृति और अध्यात्म प्रेमियों के लिए एक अनमोल कृति ‘रामराजा’ जल्द ही उपलब्ध होगी। इस पुस्तक का विमोचन कुछ समय पूर्व मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने किया था। अब यह पुस्तक रामनवमी के पावन अवसर पर पाठकों के लिए प्रस्तुत की जाएगी। इस ग्रंथ को मध्यप्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी पी. नरहरि और प्रसिद्ध शोधकर्ता देवऋषि (पूर्व में ऋषिकेश पांडे) ने मिलकर लिखा है।

किताब पर बनेगी फिल्म, भरत चौधरी करेंगे निर्माण

इस महत्वपूर्ण पुस्तक के आधार पर जल्द ही एक फिल्म भी बनने जा रही है। नामी फिल्म निर्माता भरत चौधरी ने इसके लेखकों से संपर्क किया है। इस फिल्म का निर्देशन स्वयं लेखक देवऋषि ही करेंगे। फिल्म की रूपरेखा पर कार्य किया जा रहा है और जल्द ही इसे लेकर आगे की योजना बनाई जाएगी। यह फिल्म भारतीय इतिहास और आध्यात्मिकता को एक नया दृष्टिकोण देगी।

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‘रामराजा’ में क्या है खास?

इस ग्रंथ में ओरछा के ऐतिहासिक वैभव और सांस्कृतिक धरोहर को विस्तार से समाहित किया गया है। यह पुस्तक उन पहलुओं पर प्रकाश डालती है, जो अब तक अनछुए और अज्ञात रहे हैं। इसमें बताया गया है कि मध्यप्रदेश के ओरछा को वह अनूठा सम्मान प्राप्त है, जहां भगवान श्रीराम को राजा के रूप में पूजा जाता है। यह परंपरा 15वीं शताब्दी से चली आ रही है, जब बुंदेलखंड के शासक राजा मधुकर शाह और उनकी रानी कुंवर गणेश के भक्ति मार्ग ने इसे जन्म दिया।

भगवान श्रीराम के ओरछा आने की ऐतिहासिक कथा

राजा मधुकर शाह भगवान श्रीकृष्ण के उपासक थे और वे चाहते थे कि उनकी रानी कुंवर गणेश भी उनके साथ वृंदावन जाएं। लेकिन रानी श्रीराम की अनन्य भक्त थीं। उन्होंने भगवान श्रीराम की आराधना के लिए अयोध्या जाकर कठोर तपस्या की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम ने बालरूप में दर्शन दिए और ओरछा आने के लिए सहमति दी, परंतु तीन शर्तें रखीं:

  1. वे ओरछा में राजा के रूप में पूजे जाएंगे।
  2. जिस स्थान पर उनकी मूर्ति स्थापित होगी, वहां से वे कभी नहीं हटेंगे।
  3. उनकी सेवा पारंपरिक देवता की तरह नहीं, बल्कि एक राजा की तरह की जाएगी।

रानी जब श्रीराम की मूर्ति लेकर ओरछा लौटीं, तब तक मंदिर निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ था। इसलिए वह मूर्ति महल में ही रखी गई। जब तक मंदिर पूर्ण हुआ, तब तक भगवान राम महल में प्रतिष्ठित हो चुके थे और उनकी शर्तों के अनुसार, उन्हें वहाँ से हटाया नहीं जा सकता था। तभी से भगवान श्रीराम ओरछा के राजा के रूप में पूजे जाते हैं।

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तुलसीदास और रामचरितमानस से ऐतिहासिक संबंध

यह ग्रंथ इस अनोखे तथ्य को भी उजागर करता है कि जिस दिन भगवान श्रीराम ने रानी कुंवर गणेश को दर्शन दिए, उसी दिन गोस्वामी तुलसीदास ने “रामचरितमानस” की रचना आरंभ की थी। यह संयोग भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक गहराइयों को दर्शाता है और भक्तों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण संदेश देता है।

‘ओरछा के राजा हैं राम’ भजन का लोकार्पण

भगवान श्रीराम के ओरछा आगमन की कथा को संगीतमय रूप देने के लिए एक विशेष भजन “ओरछा के राजा हैं राम” तैयार किया गया है। इस भजन को बॉलीवुड के प्रसिद्ध गायक शान ने अपनी आवाज दी है। इसका संगीत देवऋषि ने दिया है और गीत के बोल देवऋषि एवं पी. नरहरि ने लिखे हैं। इस भजन की धुन भक्तों को रामराजा के पावन चरणों में अर्पित होने की अनुभूति कराएगी। इसे इस वर्ष रामनवमी पर रामराजा मंदिर को समर्पित करते हुए रिलीज किया जाएगा।

‘रामराजा’: एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक धरोहर

आईएएस पी. नरहरि और देवऋषि ने बताया कि यह ग्रंथ भगवान श्रीराम के ओरछा आगमन की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक कथा को संकलित करता है। साथ ही, यह बुंदेलखंड के गौरवशाली इतिहास, मंदिर निर्माण की पृष्ठभूमि और भक्ति परंपरा की गहरी व्याख्या भी प्रस्तुत करता है। यह मात्र एक ऐतिहासिक कथा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक दर्शन है जो यह दर्शाता है कि भगवान केवल मंदिरों तक सीमित नहीं होते, बल्कि वे हमारे राष्ट्र और हृदय के राजा हैं।