बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों पर मतगणना (Bihar assembly election) जारी है. इसमें एग्जिट पोल को धता बताते हुए बीजेपी फिलहाल आगे दिख रही है. आरजेडी नेता तेजस्वी का नंबर इसके बाद है. अब पोल्स के अनुमान बदलने के साथ ही साइलेंट वोटरों का जिक्र जोर पकड़ चुका है. माना जा रहा है कि साइलेंट यानी परदे के पीछे रहने वाले मतदाता पासा पलटकर रख देंगे. जानिए, क्या हैं ये साइलेंट वोटर और कौन इनमें शामिल है.
साइलेंट वोटर वो हैं, जो राजनैतिक वाद-विवाद में उलझे हुए या राजनैतिक चर्चा करते नहीं दिखते, लेकिन चुनावी बाजी को पलटने में जिनका सबसे बड़ा हाथ होता है. आमतौर पर महिलाओं और बुजुर्गों को चुप्पा वोटरों की श्रेणी में रखा जाता है. इनका एक पक्का राजनैतिक मत होता है लेकिन अक्सर ये राजनैतिक गणित बिठाते हुए हाशिये पर रहते हैं.
राजनीति के माहिर खिलाड़ी भी सबसे ज्यादा फोकस युवाओं या फिर पुरुषों पर करते हैं. वे मानते हैं कि वोट तय करने में इस वर्ग की भूमिका सबसे ज्यादा है, जो कि वास्तव में है भी. लेकिन वोटों का अंतर प्रभावित करने में चुप्पा वोट बड़ा खेल कर जाते हैं.
मुख्य राजनीति में महिलाओं को उतना प्रतिनिधित्व नहीं – सांकेतिक फोटो
सभी पार्टियां महिला मुद्दों पर बात करती हैं, योजनाओं के जरिए उन्हें लाभ पहुंचाने का दावा भी करती हैं, लेकिन इसके बावजूद मुख्य राजनीति में महिलाओं को उतना प्रतिनिधित्व नहीं देतीं जितनी उनकी जनसंख्या है और जितने मुद्दों पर उन्हें प्रतिनिधित्व की जरूरत है. ऐसे में चुनावी बाजी उस पार्टी के पक्ष में चली जाती है, जो ज्यादा भरोसमंद लगे.
पिछले कार्यकाल में थोड़ा-बहुत भी काम कर चुके नेता चूंकि आजमाए जा चुके होते हैं, लिहाजा महिला वोटर उस तरफ ज्यादा जाती दिखती हैं. फिलहाल बिहार विधानसभा चुनाव के शुरुआती रुझान भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं. एनडीए अनुमान से विपरीत राजद को टक्कर दे रहा है. हालांकि फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता.
चुप्पा वोटरों में एक और वर्ग इस साल के चुनावों में शामिल है, ये हैं प्रवासी मजदूर. इस बार कोरोना वायरस के कारण बहुत से प्रवासी मजदूर महानगरों से अपने-अपने राज्य लौट चुके हैं. बिहार में भी प्रवासी मजदूरों की बड़ी संख्या घर लौटी.
कोरोना के कारण बिहार लौट चुके प्रवासी मजदूर भी नतीजों पर असर डालेंगे- सांकेतिक फोटो (news18 English via AP)
सरकारी आंकड़ों की मानें तो कोरोना काल और लॉकडाउन के दौरान बिहार में अबतक करीब 25 लाख प्रवासी लौट चुके हैं. इन प्रवासी मजदूरों का वोट भी काफी कुछ बदलने जा रहा है. वैसे तो ये युवा वर्ग है, जिसपर राजनैतिक पार्टियों ने अपने-अपने तरीके से फोकस किया लेकिन अलग से प्रवासी मजदूरों को लेकर कुछ खास वादा नहीं दिख रहा है. ऐसे में कोरोना के दौरान काफी कुछ झेल चुके इस तबके की थाह पाना आसान नहीं. माना जा रहा है कि ये भी तस्वीर बदल सकते हैं.
केवल डाटा पर ध्यान दें तो कुल वोटरों और साइलेंट वोटरों की संख्या में बड़ा फर्क दिखता है. इस बार के विधानसभा चुनाव में लगभग सवा 7 करोड़ वोटर हैं. इनमें साइलेंट वोटर की संख्या लगभग 35 लाख है. इसमें प्रवासी मजदूरों को पक्की तरह से शामिल किया गया है, या नहीं, इसका ठीक अनुमान नहीं मिलता है. वैसे 35 लाख वोटरों में लगभग 15 लाख वोटर बुजुर्ग हैं. इनके लिए भी अक्सर पुराने और आजमाए हुए राजनैतिक खिलाड़ी ही भरोसेमंद माने जाते हैं. कुल मिलाकर पीढ़ियों और सोच का फर्क जातिगत समीकरणों पर भारी पड़ सकता है.