hydroxychloroquine भारतीय दवा को लेकर चीन बैकफुट पर

 

नई दिल्‍ली। कोरोना के इलाज में मददगार साबित होने वाली भारतीय दवा hydroxychloroquine को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा करने वाली चीन की स्वास्थ्य पत्रिका लैंसेट बैकफुट पर आ गई है। बीते 22 मई को लैंसेट में प्रकाशित रिसर्च स्टडी में कोरोना मरीजों पर hydroxychloroquine दवा से गंभीर खतरे की बात कही गई थी।

जिसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने भी इसके ट्रायल पर रोक लगाई थी। हालांकि डब्ल्यूएचओ की रोक के बावजूद भारत, ब्राजील और अन्य देश इसका प्रयोग जारी रखे हुए थे। अब, रिसर्च जर्नल लैंसेट को भी इस दवा को लेकर विवादित स्टडी वापस लेनी पड़ी।

दुनियाभर में कोरोना संक्रमण से प्रभावित देशों को भारतीय दवा hydroxychloroquine ने बड़ी उम्मीद दिखाई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की निगरानी में कोरोना मरीजों पर यह दवा असरदार साबित हुई है। इसी को देखते हुए न केवल अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप इसकी प्रशंसा कर चुके हैं, बल्कि कई देशों ने कोरोना संकट के दौर में इस दवा को हाथों-हाथ लिया है।

भारत मलेरिया और अर्थराइटिस की ऐसी दवाओं का बड़ा उत्पादक देश है और इसने कोरोना संक्रमण काल में कई देशों को hydroxychloroquine की आपूर्ति की है।

मेडिकल रिसर्च जर्नल लैंसेट में प्रकाशित रिसर्च पर दुनियाभर से आपत्तियां आईं। करीब  100 से ज्यादा शोधकर्ताओं ने जांच की मांग की थी।रिपोर्टों के मुताबिक रिसर्च के डेटा इंडिपेंडेंट इवैल्यूएशन के लिए नहीं मिल पाए, इसलिए लैंसेट को यह स्टडी वापस लेनी पड़ी। दुनिया भी मानती है कि कोरोना के इलाज में यह भारतीय दवा बहुत मददगार है।

कोरोना के इलाज में मददगार इस भारतीय दवा के बारे में लैंसेट ने जो रिपोर्ट छापी, उसको लेकर काफी विवाद हुआ। सोशल मीडिया पर तो इसे चीन की साजिश तक बताया गया। लोगों को आश्चर्य हुआ कि चीन की एक स्टडी के आधार पर डब्ल्यूएचओ ने इसके ट्रायल पर क्यों रोक लगाई!

बहरहाल, कुछ ही दिन बाद पत्रिका को बैकफुट पर आना पड़ा और उससे पहले डब्ल्यूएचओ को भी रोक हटानी पड़ी।इस स्टडी का विश्लेषण करने वाली फर्म सर्जिस्फीयर ने इंडिपेंडेंट इवैल्यूऐशन के लिए  डेटा देने से ही मना कर दिया। इस स्टडी में दावा किया गया था कि कोरोना संक्रमित मरीजों को एचसीक्यू देने से उनकी मौत का जोखिम बढ़ जाता है।

दुनियाभर के 100 से ज्यादा शोधकर्ताओं ने डब्ल्यूएचओ और दूसरी संस्थाओं से इस रिपोर्ट की जांच कराने की मांग की थी। लैंसेट ने कहा है कि हम प्राइमरी डेटा सोर्स की गारंटी नहीं ले सकते, इसलिए स्टडी वापस ले रहे हैं।

डब्ल्यूएचओ ने रोका था ट्रायल, फिर दी अनुमति 
लैंसेट की रिसर्च स्टडी के आधार पर पिछले हफ्ते विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना के मरीजों पर hydroxychloroquine दवा का ट्रायल रोक दिया था। कुछ ही दिन बाद डब्ल्यूएचओ ने फिर से ट्रायल शुरू करने की अनुमति दे दी।

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हालांकि डब्ल्यूएचओ की रोक के बावजूद भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने तर्क देते हुए इसका इस्तेमाल जारी रखने की बात कही थी। आईसीएमआर का तर्क था कि भारत में इस दवा के विशेष साइड इफेक्ट नहीं देखे गए हैं।

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