एकता एवँ प्रेम का संदेश,नेकी का माहे रमजान

रमज़ान बरक़त एवँ एकता का महान महीना है।जिसके नियम बहुत कठिन होते हैं और इसे सहनशीलता का महीना माना जाता है।रमज़ान के रोज़ों में रोज़ेदार के दिमाग़ से लेकर पांव तक इंसान के पूरे वजूद का रोज़ा होना चाहिए।
यानि कि दिमाग़ से किसी का बुरा न सोचे,किसी के अहित की कामना न करे।। आँखों में बेहयाई न हो,किसी पर गलत नज़र न पड़े,बुरा न देखे।। कान से बुराई एवँ हराम चीज़ न सुने।मुँह से ज़बान से किसी को तकलीफ नहो,ग़ीबत न करे।दिल में किसी के लिए बुराई,किना,कपट, बुग्ज़, हसद न हो ये सीने का दिल का रोज़ा है।।हाथ से किसी को गलत न तोले, किसी को मारे नहीं।
पाँव किसी गुनाह वाले रास्ते की और न उठाएं।तकब्बुरना चाल न चलें,ये पैर का रोज़ा।ये हुआ सारी इंद्रियों एवँ अंगों का रोज़ा इसके बाद आता है पेट का रोज़ा यानी सेहरी से अफ्तार तक कुछ न खाना और हराम लुकमा पेट मे न उतरे। तभी इसका सही सवाब हासिल होता है।महज़ भूखे रहना रोज़ा नहीं है।
रोज़ा त्याग का प्रतीक है एवँ इन दिनों में दान की अत्यधिक महत्ता है अतः महामारी के इन मुश्किल दिनों में पास पड़ोस या कहीं भी कोई भी जरूरतमंद हो तो मदद अवश्य करना चाहिए।
ऐसे रोज़े से बन्दा अल्लाह को हासिल कर लेता है और अल्लाह हासिल हो गया तो हर चीज़ हासिल है।रोज़े का मर्तबा अल्लाह के सवाब देने में सबसे ऊंचा है।
हुज़ूर सलल्लाहोअलैहे व सल्लम ने फरमाया है कि अगर मेरी उम्मत को पता चल जाये कि माहे रमज़ान के रोज़ो की क्या अहमियत,बरक़त है तो हर शख़्स ये चाहे के पूरे साल रमज़ान रहे।और हदीस ये भी है कि माहे रमज़ान का एक भी फ़र्ज़ रोज़ा बिना किसी जायज़ वजह के छूट जाए तो सारी जिंदगी अगर इंसान रोज़े रखे तो भी उस एक रोज़े की कमी पूरी नहीं हो सकती।
नमाज़,तिलावत,कलमा,तौबा,दुआ, बेनामी मदद,ज़कात रमज़ान के चाँद सितारे हैं।
साइंस रिसर्चेस भी रोज़े की हिमायत करती नज़र आती हैं।रोज़े में खाली पेट होने से जिस्म को फायदा पहुँचता है।पाचन प्रक्रिया बेहतर होती है और उम्र भी बढ़ती है।और 15 घण्टे के लगभग खाली पेट रहने की यह प्रकिया तीस दिन रहना चाहिए।इसके भी वैज्ञानिकी नतीजे एवँ प्रमाण सामने आए हैं।
रोज़े में एंड्रोफिल हार्मोन का स्त्राव बढ़ने से मिजाज़ पर अच्छा असर यानी कि फील गुड होता है।ओटो फेगी प्रक्रिया से खराब कोशिकाएं नष्ट कर दी जाती हैं।नए सेल बनने से इम्युनिटी पॉवर बढ़ती है। कैंसर की संभावना कम होती है।
माहे रमज़ान में कुरआन पाक नाज़िल हुआ था।
रमज़ान के आखरी अशरे यानी आखरी दस रोज़ों में इबादत का अत्यधिक महत्व है।
इसी अशरे में शबे क़द्र की मुबारक रात छब्बीसवें रोज़े को आती है।
शबे क़द्र जिसे लैलतुल क़द्र भी कहा जाता है
उसे कईं लोग 21,23,25,27,व 29 वे रोज़े को भी यानी पाँच राते शबे क़द्र की भी मानते हैं।शबे क़द्र के बारे में क़ुरआने मजीद में अल्लाह फरमाता है, ये रात एक ऐसी रात है जिसमें एक रात इबादत करना,हज़ार महीने इबादत करने के बराबर है।यानी लगभग तिरयासी साल छह महीने इबादत करने से ज्यादा सवाब शबे क़द्र की एक रात इबादत करने से हासिल होता है।
रोज़ेदार की दुआ इफ़्तार के वक्त क़ुबूल होती है।
अतः कोरोना के खात्मे एवँ सबकी भलाई के लिए दुआ अवश्य करनी चाहिए।
०-ज़ाकिर हुसैन अमि सनावद