बिहार चुनाव 2020: क्या बदलाव के लिए युवाओं ने तेजस्वी यादव पर जताया भरोसा?

 

(मारिया शकील/रौनक कुमार गुंजन)

नई दिल्ली/पटना. बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) के नतीजे आने में बस कुछ घंटे रह गए हैं. बिहार की राजनीति हर 15 साल बाद बदलती है. प्रतिष्ठित जयप्रकाश नारायण आंदोलन में दिखाई देने वाली प्रवृत्ति इस साल के बिहार चुनाव में फिर से आकार ले रही है. लालू-राबड़ी की जोड़ी ने 15 वर्षों तक राज्य पर शासन किया. फिर नीतीश कुमार ने 2005 से 2020 तक सत्ता संभाली. अब बिहार के युवाओं ने जाति के मैट्रिक्स से ऊपर उठकर बदलाव के लिए वोट दिया है. तीन दशकों से अधिक समय में पहली बार युवा इस चुनाव में जाति-धर्म से परे जाकर एक राज्य का नेता चुनने के रूप में उभरे हैं. 10 नवंबर को ये तय हो जाएगा कि बिहार की जनता ने ‘बदलाव’ के लिए इस बार किस पर भरोसा जताया?

तमाम एग्जिट पोल (Exit Poll of Bihar Election) में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की अगुवाई वाले महागठबंधन (Mahagathbandhan) को बढ़त मिलने का अनुमान जताया जा रहा है. एग्जिट पोल तो चुनावी पंडितों का गुणा-भाग होता है, लेकिन बिहार चुनाव से जुड़ी एक बात रिजल्ट आने से पहले साफ हो चुकी है, वो ये है कि बिहार के युवाओं ने इसबार बदलाव के लिए युवा नेता तेजस्वी यादव को एक मौका देने का मन बनाया है.

पूर्वी चंपारण के मोतिहारी में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में एक युवा मतदाता कहते हैं, ‘मैं एक राजपूत हूं. 2010 और 2015 में मैं बीजेपी के साथ था, लेकिन इस बार मैं तेजस्वी यादव के पक्ष में हूं. हम नीतीश कुमार को हटाना चाहते हैं. हम युवा हैं और स्पष्ट रूप से युवाओं के बारे में सोचेंगे. हमें नौकरी चाहिए, रोजगार चाहिए. जब मैंने एनटीपीसी में नौकरी के लिए आवेदन किया था, तब से दो साल हो गए हैं. अब तक उसका कुछ ना हुआ. अब मैं राज्य सेवा आयोग की परीक्षा में शामिल हुआ हूं.’

RJD नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस चुनाव में एक नए रूप में दिखे हैं. 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में सुस्त पड़े तेजस्वी इस बार यहां से वहां दौड़ते नजर आए. उन्होंने एक दिन में 19-19 चुनावी जनसभाएं कीं. युवाओं की भारी भीड़ ने उनका अनुसरण किया. 31 वर्षीय तेजस्वी यादन ने इस दौरान हर रैली में 10 लाख सरकारी नौकरियों के अपना वादा दोहराया. तेजस्वी ने कहा, ‘वह जिस दिन मुख्यमंत्री बनेंगे, नौकरियों के अपने वादे पर हस्ताक्षर करेंगे.’ पार्टी ने दावा किया है कि बिहार सरकार में पहले से ही 4.5 लाख पद रिक्त हैं और अन्य 5.5 लाख नौकरियों के सृजन की जरूरत है.

तेजस्वी यादव के इस वादे ने युवाओं का मनोबल बढ़ाया है. उनकी उम्मीदें जगाई हैं. बिहार में बेरोजगारी की दर पिछले साल 10.3 प्रतिशत थी और देश में सबसे ज्यादा थी. सीएमआईई के अनुसार, एक साल में राज्य की बेरोजगारी दर में 31.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई. अप्रैल 2020 में ये 46.6 प्रतिशत हो गई, जो राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना है. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 64वें दौर में कहा गया है कि बिहार के कुल प्रवासियों में लगभग 30.7 प्रतिशत रोजगार की तलाश में दूसरे शहर चले गए, क्योंकि उन्हें अपने राज्य में कोई काम नहीं मिला.

सिर्फ 2014 और 219 के लोकसभा चुनाव में ऐसा हुआ कि इतनी ज्यादा तादाद में युवाओं का समर्थन नरेंद्र मोदी के लिए मिला था. अब पहली बार है कि किसी राज्य के नेता के लिए ऐसी प्रवृत्ति दोहराई जा रही है. जैसे 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने के लिए वोट कर रहा था. वो स्थानीय उम्मीदवार की तरफ देखता ही नहीं था। पूछने पर कहता था, “नरेंद्र मोदी को PM बनाना है.” ठीक इसी तर्ज पर इस विधानसभा चुनाव में तेजस्वी के लिए लोगों ने वोट डाला है. ये अलग बात है कि इस आकर्षण का एक जातीय आधार भी ग्राउंड पर साफ-साफ दिखा.

बिहार के युवा वोटर्स के लिए इस बार का चुनाव पिछले के चुनावों से कई मायनों में अलग था. यही वजह है कि युवाओं ने तमाम बहस और जाति-धर्म के समीकरण से उपर उठकर युवा का साथ देने की फैसला लिया.

बिहार के मनेर शरीफ में एक युवा मतदाता कहते हैं, ‘पिछले 15 वर्षों से नीतीश कुमार कहते रहे हैं कि राज्य को विशेष राज्य का दर्जा चाहिए. मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि उनके पास राज्य के लिए कोई योजना नहीं है. बिहार में भूस्खलन हुआ है, राज्य के पास कोई ठोस नीति नहीं है. अगर बिहार में रोजगार नहीं दे सकते, नौकरी नहीं मिल सकती, तो नीतीश कुमार किस लिए चुने गए हैं. बिहार में शिक्षा की स्थिति ऐसी है कि तीन साल का स्नातक पाठ्यक्रम 6 साल में पूरा होता है. हमें समय पर डिग्री नहीं मिलती है. इन सबमें बदलाव की जरूरत है.’

नीतीश कुमार की ‘सुशासन बाबू’ की छवि भी युवा मतदाता की दृष्टि में बासी हो गई है. एक कल्याणकारी योजना के तहत, शिक्षा और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए, उन्होंने पूरे राज्य में युवा लड़कियों को साइकिल प्रदान की थी, लेकिन आगे जाकर ये योजना भी अपने उद्देश्यों में नाकाम रही.

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इन सबके बीच बिहार एक आकांक्षी वोट के उदय को देख रहा है, जो सिर्फ, बिजली, पानी से अधिक भी कुछ चाहता है. नया मतदाता अब रोजगाक चाहता है, शिक्षा चाहता है. यहीं से नीतीश कुमार ने राज्य को विकास की पटरी पर लाने के बावजूद युवा बिहारियों से जुड़ाव खो दिया है. तेजस्वी यादव इस चुनाव में बिहार के लगभग हर इलाके में पहुंच गए. तेजस्वी के समर्थक आक्रामक तौर से उनका समर्थन करते दिखे तो उनके विरोधी उनकी उतनी ही कड़ी आलोचना. इस चुनाव में तेजस्वी बिहार के एक ऐसे नेता हैं, जिन्हें आप पसंद करें या नापसंद, लेकिन नजरअंदाज नहीं कर सकते.

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